Wednesday 27 March 2019

३ लघु कविताएं

        ( मयंक शर्मा)

  (१) चुनावी बदलाव

पग कभी हरी कभी, नीली कभी केसरी
कभी पतलून कभी. अचकन डाले हैं
कभी परनाम और कभी वनक्कम करें
वेश-भूषा भाषा रूप, इनके निराले हैं
शॉर में नहाने वाले, गंगाजल उड़ेल रहे
पिज़्ज़ा वाले दलित के, तोड़ते निवाले हैं ,
गाली देने वाले आज, हाल-चाल पूछ रहे
लगता है देश में चुनाव आने वाले हैं।


(२) कुछ नसीब वाले

बड़े घर जन्मे बड़े स्कूलों में पढ़े लिखे
बड़े बिजनेस बड़े इनके नसीब हैं।
बड़ा करज़ा उठायें , उसको नहीं चुकाएं ,
देश छोड़ जाएँ नेता जनों के करीब हैं
श्रम से कमाने वाले , इज़्ज़त की खाने वाले
ईमान बचाने वाले देश में गरीब हैं
भ्रष्टाचारी  अपराधी दावत उड़ाते यहाँ
भारत के क़ानून भी कितने अजीब हैं।


(३) कॉमन मैन

बड़े दिवास्वप्न देख देख के बड़ा हुआ ये,
अब बड़े दफ्तरों में फाइलें घुमाता है.
सोचता था बदलूंगा देश औ' समाज कभी
मेट्रो बदलने में आज धक्के खाता है
तनख्वाह के आते ही क्रेडिट चुकाने वाला
फिर से ये क्रेडिट पे महीना चलाता है
तुम्हारे पड़ोस में ही कहीं घूम रहा होगा
आम आदमी है ये कहीं भी मिल जाता है।