Saturday 7 March 2020

दो नावों की सवारी (मयंक शर्मा )

बचपन से सुनता रहा अलग अलग लोगों से ,
अलग अलग हालात में , अलग अलग लहजे में
डांटते समझाते माँ बाप से या रजाई में दादी-नानी से
लाख टके की बात हो जैसे , बड़े लोग समझाते थे
" दो नावों की सवारी , मतलब डूबने की तैयारी"

बड़ा होने पर पढ़े कवियों के मुक्तक दोहे
कहानियों की शिक्षाएं , पाठ्य पुस्तक की बोध कथाएं
शब्द बदले भाव नहीं, जैसे दादी की कहानी की बस बदल गई हो वर्दी
" लालच में दोनों गए , माया मिली न राम"
" दो नावों की सवारी , मानो डूबने की तैयारी "

पता नहीं क्यों नहीं जमी यह सूक्ति कभी मुझको
तर्क आत्मसात नहीं कर सका मान्यता को
माना दो नावों पर साथ चढ़ना जोखिम है ,
पर दूसरी नाव की ज़रूरत पड़ सकती है यह तो लाज़िम है
जिस नाव पर भरोसा किया वही मंझधार में डूबने लगी तो ?

तो हमेशा , हर जगह दूसरी नाव तैयार रखी मैंने
पहली नाव से सस्ती पर भरोसेमंद
पहली से थोड़ी कमज़ोर , फिर भी उपयोगी
पहली से कम खूबसूरत , पर टिकाऊ
जो भले ही उतनी तेज़ न हो , पर कम से कम डूबे नहीं

आज डूबते देखता हूं कई एक नाव वालों को ,
उनकी तेज़ , मजबूत नावें डूब रही हैं उनको लेकर
सर्वस्व जिसपर लगा दिया वही  धोखा दे गया  बहुतों को
जैसे इनकी डूबी है , वैसे मेरी भी डूब सकती है
शुक्र है मेरे पास एक और नाव है
हल्की सही , सुस्त सही , कमज़ोर सही , बेकार सही
पर क्या तिनका ही बड़ा सहारा नहीं होता डूबने वाले को ?