Thursday 3 March 2016

कम्युनलिस्म का इंजेक्शन


 चारो तरफ 'opinions' की बाढ़ आई हुयी है।  "दलित विरोधी", "एंटी नेशनल" , "फ्रीडम ऑफ़ स्पीच" , पैट्रिऑटिस्म"जैसे नारे ट्रेंड में हैं। एक पोलिटिकल पार्टी देश विरोधी कार्यक्रम करने वाले लोगों को गोली मारने की बात करती है तो दूसरी पार्टियां ऐसे कार्यक्रमों को देश की डेमोक्रेसी के लिए ज़रूरी बताते हैं।  किसी मुद्दे पर आम राय बनने का नाम नहीं ले रही।  किसी को मुस्लिम होने की वजह से जज किये जाने का रोष है तो किसी को खुद को हिन्दू बोलने  पर एक विशेष  पार्टी का समर्थक मान लिया जाने का खौफ। इस हिन्दू मुस्लिम के झगडे में  ईसाई अब तक खामोश थे तो उनको उकसाने के लिए  सावरकर साहब की किताब आ  रही है जिसमें ईसामसीह को हिन्दू बताया है।   Why should Hindus & Muslims have all the fun ? तुम भी आओ न "                         दिमाग में बड़ा कन्फ्यूजन है। कुछ  "इंटेलेक्चुअल्स " चिल्लाते हैं , "इट हैज़ नथिंग तो डू विथ रिलिजन (यह धर्म के बारे में नहीं है) " . मैं मान नहीं पाता हूँ।  ये सब धर्म की वजह से ही तो है।  दो बहुत प्यारे शब्द चलन में आ गए हैं - "सेकुलरिज्म "और "कम्युनलिस्म ". कथित सेक्युलर और कम्युनल लोग एक दूसरे को इन उपाधियों से वक़्त बेवक़्त नवाज़ते रहते हैं।  
 इसकी जड़ें  कहाँ हैं ? कुछ कहते हैं कि धर्मगुरुओं ने भड़काया है जनता को।  मान लेते हैं।  लेकिन धर्मगुरु भी तो दुनिया में बिना किसी धर्म के लिए नफरत लिए आया था . कुछ कहेंगे राजनेता लोगों  भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं।  लेकिन इस्तेमाल होने के लिए भावनाएं पैदा होना भी तो ज़रूरी है।  कुछ कहेंगे की अशिक्षा इसका एक कारण है।  पर अशिक्षित आदमी को अपने धर्म से प्यार और दूसरे धर्म से नफरत की शिक्षा किसने दी ? इसका निर्णय
मैं एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ।  साझा परिवार था - माँ, बाप, दादी, परदादी, चाचा, बुआ वगैरह। स्कूल जाने से पहले का सारा ज्ञान माँ और दादी से मिला।  मुझे किसी ने हिन्दू धर्म का ज्ञान नहीं दिया।  धर्म के बारे में मेरी कुल जानकारी यह थी कि बहुत  और भगवान हैं , जो कुछ भी 'पाप' करने पर नाराज़ हो जाते हैं और सज़ा  देते हैं। बड़ों को 'नमस्ते ' न करना भी पाप था और छोटी बहन से झगड़ा करना भी। भगवान के डर ने मुझे शिष्टाचारी बना दिया। हनुमान , राम , रामायण और महाभारत की कहानियां मुझे याद थी।

 स्कूल के पहले दिन मिलने वाला आपका सबसे अच्छा दोस्त बनता है।  मुझे जीशान मिल गया, मेरी ही बेंच पर बैठा था ।  पीछे पियूष और जसबीर थे , दायें जैकब , नसीम और सत्या। बातें शुरू हुयी।  हनुमान मेरे हीरो थे , सो मैंने तुरंत उनकी कहानिया सुनानी  शुरू कर दी।  लेकिन यह क्या , बस पियूष और सत्य हनुमान को जानते थे , शायद जसबीर भी थोड़ा बहुत जानता होगा पर वो सर हिलाने के अलावा कुछ बोल नहीं पाया। उसके बाद जीशान , नसीम और जैकब ने अपने कहानियां सुनाई।  मेरे लिए वो एकदम नयी बातें थी,  हम सब हैरान थे. में सबसे एक साल बड़ा होने के नाते ज्यादा समझदार था, बिना बोले सोच सकता था ।  मुझे जो कुछ समझ  उसके हिसाब से पियूष और सत्या की मम्मी को कहानियां पता होंगी जबकि नसीम , जीशान और जैकब की मम्मी ने उनको झूठ बता दिया।  लेकिन झूठ बोलना तो पाप है।  इतने बड़े बड़े लोग भी पाप  करते हैं ?

जीशान मेरा  दोस्त था।  उसको सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ था। सो मैंने उसको भगवानों और मंदिरों का कांसेप्ट समझाया।  बदले में उसने भी मुझे अल्लाह , पीर , फ़क़ीर का फलसफा बांचा।  हम दोनों हैरान थे।  मैंने यह बात माँ से पूछी।  तब माँ ने बहुत डिप्लोमेटिक तरीके से पूरी बात समझा दी ( उन्होंने पेरेंटिंग पर कोई किताब पढ़ रही होगी ) . मैं संतुष्ट था।  हम माँ को "मम्मी" कहते हैं , पापा अपनी माँ को "माताजी "और सामने वाले गुप्ता अंकल अपनी माँ को "अम्माँ " . ऐसे ही नसीम और जीशान भगवान को "अल्लाह "बोलते हैं, बस  इतनी सी बात ।  मैंने एक नयी चीज़ सीखी और कल यह बात जीशान को बताने को उतावला हो गया।

पर जीशान ने अगले दिन मुझसे बात नहीं की।  केवल पियूष और नसीम मेरे साथ बैठे थे।  जब नसीम बाहर गया तो पियूष ने मुझे बताया "नसीम मुस्लिम है, जीशान भी।  मम्मी ने कहा है उनसे बात मत करना। " एक दिन  में सबकी सोच बदल चुकी थी।  नसीम और सत्या की मम्मी  ने मेरी मम्मी जैसा ही  कुछ बताया था सो वो मेरे दोस्त थे। जीशान सिर्फ नसीम से बात करता था।  पियूष सिर्फ मुझसे और सत्या से मिलता था , जसबीर और जैकब से हाय हेलो कर भी लेता था पर नसीम और जीशान को देख कर मुह फेर लेता था। जीशान ने पियूष , सत्या और मुझसे बात करना बंद कर दिया था।  जसबीर और जैकब से सब बात करते थे , पर सिर्फ बात।  उनका कोई दोस्त नहीं था।  क्लास में एक अजीब सा माहौल बन गया था।  एक दिन नसीम ने मुझे बताया की ज़ीशान ने उसको "काफ़िर "से दोस्ती रखने को मना किया है।  उसका इशारा हमारी दोस्ती से था।  फिर एक दिन पियूष ने मुसलमानो के इतिहास से कोई घटना क्लास में चटखारे लेकर सुनाई।  इसपर जीशान ने हिन्दुओं को पत्थर पूजने वाला पत्थर दिमाग कहा। छोटी सी उम्र में सब समझदार  गए थे। पियूष और ज़ीशान की एक दिन इस बात पर  भी बहस हुई कि अल्लाह और भगवान की फाइट करवाई जाए तो कौन जीतेगा।  अभिभावकों ने हमको "कम्युनल" या "सेक्युलर " बना दिया था।  पियूष और जीशान के दिमाग से वो फितूर कभी नहीं निकल पाया।  उनकी फेसबुक पोस्ट अभी भी उनकी मानसिकता बताते हैं।  दोनों औसत छात्र रहे।  ना अच्छा पढ़े न अच्छी नौकरी मिली। खाली टाइम और सस्ते इंटरनेट ने इनकी "धर्म सेवा " को और हवा दी।

बच्चों की मानसिकता अभिभावक बनाते हैं।  एंटीबायोटिक , हेपटाइटिस बी , पोलियो , जॉन्डिस वगैरह का इंजेक्शन लगवाते लगवाते हम बच्चो को कम्मुनलिस्म का इंजेक्शन भी कब लगा देते हैं , पता ही नहीं चलता। बच्चों को बड़ों की इज़्ज़त करना , मिल बांटकर खाना , मार पीट न करना , गाली न देना , toilet जाने के लिए इशारा करना , "नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ " गाना , गिनती पहाड़े और कविता पढ़ना सिखाने वाले माँ बाप मज़हब की आधारभूत शिक्षा देना न जाने कब सीखेंगे।

Friday 15 January 2016

हमारे अचूक हथियार - धर्म का धंधा और कड़ी निंदा।


पिछले दिनों आतंकी हमले फैशन में रहे।  और कोई घरेलू फैशन नहीं , ग्लोबल ! ग्लोबल ट्रेंड फॉलो  करना वैसे भी हमारे  लिए गर्व की बात है। तो  रशिया , फ्रांस और इजिप्ट के बाद पठानकोट और अब उडी बेस पर हुए आतंकी हमले ने हमको ऑफिशियली "terrorism survivor" राष्ट्रों की गौरवमयी लिस्ट में बनाये रखा।
क्या कहा , मुंबई ? अरे कब तक 93 और 2008 के ज़ख्म सहलाओगे।  कुछ तो लेटेस्ट और ट्रेंडी होना चाहिए कि नहीं। (कैसी विडम्बना है कि  आतंकी हमलों की त्रासदी को फैशन बोल रहा हूँ। बात बुरी लगती है, और है भी बुरी। लेकिन ज़रा सोचें उस भयानक निराशाजनक कुंठा के बारे में जो एक देशवासी से सैनिकों की मौत पर व्यंग्य लिखवाती है। )
 तो ग्लोबली फेमस तो हम हो गए एक बार फिर।  लेकिन इसका मुकाबला कैसे करें।  रूस सीरिया पर बम गिरा चुका।  फ्रांस ने २ दिन के अंदर रक्का का आतंकी ट्रेनिंग कैंप फोड़ दिया।  हम क्या करें ? facebook पर शहीदों  फोटो like और share कर दी।  सोशल मीडिया पर पॉलिटिशियन्स और पडोसी मुल्क को कोस लिया।  मन बड़ा बेचैन है, कुछ समझ नहीं आ रहा। ऐसे में हम अपने ठलुआ चाचा की राय लेते हैं। ठलुआ चाचा बहुत दूरदर्शी और विकट के प्रैक्टिकल प्राणी हैं। रिटायर हेडमास्टर हैं और हर मुद्दे में अपना दखल रखते हैं। यों 'पॉलिटिक्स' जहाँ - तहँ जमाते रहे हैं।  जब हम उनके पास पहुंचे तो वो अपने टीवी के आकर के लैपटॉप पर चित्रहार देख रहे थे इन्कोग्निटो विंडो पर।  हमको देखते ही झट से BBC की विंडो ओपन कर दी।  वो Alt +Tab  पर हमेशा कोई न्यूज़ ओपन रखते हैं . खैर हमने पूछा - "चाचा बहुत  हो गया।  अब हिन्दुस्तान को क्या करना चाहिए ? फ़्रांस की तरह जैश - ऐ - मोहम्मद के कैंप पर बम गिरा दें ? या सईद को लादेन के अंदाज़ में कर दें "एक्सेक्युट" ?"
"हाउ क्यूट " चाचा बोले और आँख मारी . फिर शुरू हो गए - लल्ला ये सब पश्चिम के चोंचले हैं।  हमको उनके जैसा करने की और उनसे सीखने की क्या ज़रूरत ?  भारत तो सदा से जगतगुरु रहा है , सो जानते ही हो। हमारे पास अपने हथियार हैं इन सब बातो से निपटने के लिए।  बम गिराना , हमला करना ये सब असभ्यता की निशानियाँ हैं।  आर्यवर्त तो सदा से विश्व की सभ्यतम संस्कृति है , सो तो तुम जानते ही हो।

" ऐसे कौन से  हथियार हैं चाचा ? " मेरी उत्सुकता बढ़ गयी थी। उसके बाद चाचा ने हमको एक गुप्त मीटिंग के   मिनट्स पेश किये जिसमें एक बड़े राष्ट्रनेता ने इस मुद्दे को डील करने पर प्रकाश डाला था , उसका सार नीचे दिया है। इस मीटिंग में पक्ष और विपक्ष के सभी नेता मौजूद थे।  ठलुआ चाचा ने उस मीटिंग में बतौर विशेषज्ञ शोभा  बढ़ाई थी। 
 " हमारे  पास नैतिकता का ऐसा हथियार है जिससे विश्व शांति पालक मारते ही कायम हो सकती है।  इसको ड्यूल  स्ट्रेटेजी से डील करना चाहिए। सबसे पहले यह समझो की आतंकवाद का प्रतिवाद हमारा प्रमुख उद्देश्य नहीं है , सरकार का मुख्य उद्देश्य होता है जनता को यह विश्वास दिलाना कि हम जनता की रक्षा और आतंकवाद से लड़ने हेतु प्रतिबद्ध हैं।  होना और बताना दो अलग अलग बातें हैं , इसको जितना जल्दी समझ लोगे उतना  सभी के लिए अच्छा होगा. जनता का ध्यान जितना मुद्दे से डाइवर्ट हो जायेगा , उतना ही सरकार और विपक्ष के लिए  शुभ रहेगा .  अब देश में हमारे जैसे काइयाँ राजनेताओं के अलावा २ तरह की जनता और है।  90 % कॉमन मैन ब्रीड और 10 % बुद्धिजीवी।"

सबसे पहले तो राष्ट्रवादी  विंग यह साबित कर दें की हमला करने  वाले मुसलमान थे। मुसलमान  और लिबरल विंग  के नेता इसका प्रतिवाद करें।  "आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता " जैसे  रेडीमेड वक्तव्य दिए जाएँ।  उनके खण्डन के लिए  "हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना" आदि का सिद्धांत प्रतिपादित किया जाए। फिर "असहिष्णुता "और  "धर्म निरपेक्षता " की बातें हों।  छोटे मोटे दंगे आदि हो जाएँ तो बहुत ही उत्तम।  इससे 90 प्रतिशत कॉमन जनता बिजी हो जायेगी।  "व्यस्त जनता इज मस्त जनता।
इस प्रभाव को और गहरा करने के लिए हमारे राजनेता भाई तुरंत इस घटना की कड़ी निंदा कर दें।  कड़ी निंदा हर प्रहार का रामबाण हिन्दुस्तानी इलाज़ है। कुछ विषम परिस्थितियों में इसके उपयोग का तरीका नीचे दिया है।

१) आतंकवादी हमला - आतंकवाद की कड़ी निंदा।
२) युद्धविराम का उल्लंघन - उलंघन करने वाले देश की कड़ी निंदा।
३) हेट स्पीच - हेट स्पीच देने वाले नेता की कड़ी निंदा।
४) बढ़ती मंहगाई - सरकार मुनाफाखोरों की कड़ी निंदा करे और विपक्ष सरकार की।
५) भ्रष्टाचार - विपक्ष सरकार की कड़ी निंदा करे और सरकार विपक्षी दागियो की।
५) भाई भाई में अनबन - मोहल्ले वाले भाइयो की कड़ी  निंदा करें।
६) बढ़ते बलात्कार - बलात्कारियो और उनकी वकालत करने वालो की कड़ी निंदा की जाए।
७) अवैध प्रेम सम्बन्ध - अनैतिकता की कड़ी निंदा की जाए।
८ ) घर में चूहे छिपकली आदि हो जाना - चूहे और छिपकलियों की कड़ी निंदा की जाए।

नोट - ध्यान रहे , करना हमको कुछ नहीं है

मैं इस ज्ञान से अभिभूत हो उठा।  पर मेरे  पापी मन ने एक सवाल और पूछा - "पर चाचा , बची हुयी १०% जनता कैसे बिजी होगी ? "

चाचा उवाच - अरे कौन सी जनता ? १०% बुद्धिजीवी ? अरे वो तो वैसे ही बहुत बिजी है बुड़बक।  बुद्धिजीवी से हमको कोई खतरा नहीं है।  ये लोग निहायती शरीफ हैं।  इनका सारा गुस्सा भर्चुअल वर्ल्ड में ही निकलता है।  और अच्छा भी है।  सोशल मीडिया पर भी तो कुछ अपडेट होता रहना चाहिए न।

पर चाचा ऐसा करने से भविष्य में होने वाले आतंकी हमले ख़त्म हो जायेंगे ?

 "तुम्हारी यही समस्या है , तुम्हारे बेसिक्स ही क्लियर नहीं  हैं। जाओ , बहुत समय बर्बाद किया तुमने हमारा " फिर चाचा देश की हित चिंता में मग्न हो गए।