Wednesday 28 February 2018

बुरा न मानो होली है !


 लो फिर से होली आती है , सब स्वागत को तैयार रहें
रंग के संग भांग और कीचड़ , और शराब की भरमार रहे।
फिर कर गुजरें उत्पात कोई , होली के बहाने इक - आधा,
त्यौहार से हमको क्या मतलब , क्या जानें उसकी मर्यादा।
ये संयम - नियम न मानेंगे , हम तो हैं मस्तों की टोली
हुड़दंग सहो और चुप बैठो, भाई बुरा न मानो , है होली।

 ऑफिस जाती महिलाओं को गुब्बारा मार दिया , तो क्या ?
और सोते हुए भिखारी का कीचड़ से उद्धार किया , तो क्या ?
हम टंकी में रंग घोलेंगे , हर घर में वही रंग जाएगा,
पानी की बर्बादी पे तुम्हारा , भाषण काम न आएगा।
कॉलोनी की महिलाओं से, हरकत अश्लील ज़रा कर ली।
तो इतना क्यों चिल्लाते हो ? भाई बुरा न मानो , है होली।

होली निरपेक्ष धर्म से है , हम सबके संग मनाएंगे।
और  'उनके'  मोहल्लों  में जाकर, फिर लाल-हरा नहलाएंगे
फिर भी वो अगर नहीं भड़के , तो विजय ध्वजा लहरायेंगे
"ज़िंदा - मुर्दा" के  नारों से फिर आसमान गुंजायेंगे।
फिर थोड़ा दंगा हो जाए , चल भी जाए कुछ बम - गोली
दो चार तो मरते रहते हैं , भाई बुरा न मानो , है होली।

Sunday 25 February 2018


हमारा समाज भी ना , दिग्भ्रमित हो चुका है।

हज़ारो करोड़ के लोन से उद्योग लगाए हैं
क्या हुआ गर बैंक के पैसे नहीं लौटाए हैं  ?
पर ये बैंक उद्योगपति से क्यों वापस मांगते  है ?
क्या बड़े लोगों से उसके रिश्ते को नहीं जानते  है ?
बैंक पहले ये देखे कि किसान ने 50 हज़ार नहीं लौटाए हैं
और इस बार 2  प्रतिशत लोग कार लोन की किश्त नहीं भर पाए हैं
उद्योगपति बेचारा तो देश तक छोड़ चुका है
हमारा समाज भी ना , दिग्भ्रमित हो चुका है।