चारो तरफ 'opinions' की बाढ़ आई हुयी है। "दलित विरोधी", "एंटी नेशनल" , "फ्रीडम ऑफ़ स्पीच" , पैट्रिऑटिस्म"जैसे नारे ट्रेंड में हैं। एक पोलिटिकल पार्टी देश विरोधी कार्यक्रम करने वाले लोगों को गोली मारने की बात करती है तो दूसरी पार्टियां ऐसे कार्यक्रमों को देश की डेमोक्रेसी के लिए ज़रूरी बताते हैं। किसी मुद्दे पर आम राय बनने का नाम नहीं ले रही। किसी को मुस्लिम होने की वजह से जज किये जाने का रोष है तो किसी को खुद को हिन्दू बोलने पर एक विशेष पार्टी का समर्थक मान लिया जाने का खौफ। इस हिन्दू मुस्लिम के झगडे में ईसाई अब तक खामोश थे तो उनको उकसाने के लिए सावरकर साहब की किताब आ रही है जिसमें ईसामसीह को हिन्दू बताया है। Why should Hindus & Muslims have all the fun ? तुम भी आओ न " दिमाग में बड़ा कन्फ्यूजन है। कुछ "इंटेलेक्चुअल्स " चिल्लाते हैं , "इट हैज़ नथिंग तो डू विथ रिलिजन (यह धर्म के बारे में नहीं है) " . मैं मान नहीं पाता हूँ। ये सब धर्म की वजह से ही तो है। दो बहुत प्यारे शब्द चलन में आ गए हैं - "सेकुलरिज्म "और "कम्युनलिस्म ". कथित सेक्युलर और कम्युनल लोग एक दूसरे को इन उपाधियों से वक़्त बेवक़्त नवाज़ते रहते हैं।
इसकी जड़ें कहाँ हैं ? कुछ कहते हैं कि धर्मगुरुओं ने भड़काया है जनता को। मान लेते हैं। लेकिन धर्मगुरु भी तो दुनिया में बिना किसी धर्म के लिए नफरत लिए आया था . कुछ कहेंगे राजनेता लोगों भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस्तेमाल होने के लिए भावनाएं पैदा होना भी तो ज़रूरी है। कुछ कहेंगे की अशिक्षा इसका एक कारण है। पर अशिक्षित आदमी को अपने धर्म से प्यार और दूसरे धर्म से नफरत की शिक्षा किसने दी ? इसका निर्णय
मैं एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ। साझा परिवार था - माँ, बाप, दादी, परदादी, चाचा, बुआ वगैरह। स्कूल जाने से पहले का सारा ज्ञान माँ और दादी से मिला। मुझे किसी ने हिन्दू धर्म का ज्ञान नहीं दिया। धर्म के बारे में मेरी कुल जानकारी यह थी कि बहुत और भगवान हैं , जो कुछ भी 'पाप' करने पर नाराज़ हो जाते हैं और सज़ा देते हैं। बड़ों को 'नमस्ते ' न करना भी पाप था और छोटी बहन से झगड़ा करना भी। भगवान के डर ने मुझे शिष्टाचारी बना दिया। हनुमान , राम , रामायण और महाभारत की कहानियां मुझे याद थी।
स्कूल के पहले दिन मिलने वाला आपका सबसे अच्छा दोस्त बनता है। मुझे जीशान मिल गया, मेरी ही बेंच पर बैठा था । पीछे पियूष और जसबीर थे , दायें जैकब , नसीम और सत्या। बातें शुरू हुयी। हनुमान मेरे हीरो थे , सो मैंने तुरंत उनकी कहानिया सुनानी शुरू कर दी। लेकिन यह क्या , बस पियूष और सत्य हनुमान को जानते थे , शायद जसबीर भी थोड़ा बहुत जानता होगा पर वो सर हिलाने के अलावा कुछ बोल नहीं पाया। उसके बाद जीशान , नसीम और जैकब ने अपने कहानियां सुनाई। मेरे लिए वो एकदम नयी बातें थी, हम सब हैरान थे. में सबसे एक साल बड़ा होने के नाते ज्यादा समझदार था, बिना बोले सोच सकता था । मुझे जो कुछ समझ उसके हिसाब से पियूष और सत्या की मम्मी को कहानियां पता होंगी जबकि नसीम , जीशान और जैकब की मम्मी ने उनको झूठ बता दिया। लेकिन झूठ बोलना तो पाप है। इतने बड़े बड़े लोग भी पाप करते हैं ?
जीशान मेरा दोस्त था। उसको सही बात बताना मेरा फ़र्ज़ था। सो मैंने उसको भगवानों और मंदिरों का कांसेप्ट समझाया। बदले में उसने भी मुझे अल्लाह , पीर , फ़क़ीर का फलसफा बांचा। हम दोनों हैरान थे। मैंने यह बात माँ से पूछी। तब माँ ने बहुत डिप्लोमेटिक तरीके से पूरी बात समझा दी ( उन्होंने पेरेंटिंग पर कोई किताब पढ़ रही होगी ) . मैं संतुष्ट था। हम माँ को "मम्मी" कहते हैं , पापा अपनी माँ को "माताजी "और सामने वाले गुप्ता अंकल अपनी माँ को "अम्माँ " . ऐसे ही नसीम और जीशान भगवान को "अल्लाह "बोलते हैं, बस इतनी सी बात । मैंने एक नयी चीज़ सीखी और कल यह बात जीशान को बताने को उतावला हो गया।
पर जीशान ने अगले दिन मुझसे बात नहीं की। केवल पियूष और नसीम मेरे साथ बैठे थे। जब नसीम बाहर गया तो पियूष ने मुझे बताया "नसीम मुस्लिम है, जीशान भी। मम्मी ने कहा है उनसे बात मत करना। " एक दिन में सबकी सोच बदल चुकी थी। नसीम और सत्या की मम्मी ने मेरी मम्मी जैसा ही कुछ बताया था सो वो मेरे दोस्त थे। जीशान सिर्फ नसीम से बात करता था। पियूष सिर्फ मुझसे और सत्या से मिलता था , जसबीर और जैकब से हाय हेलो कर भी लेता था पर नसीम और जीशान को देख कर मुह फेर लेता था। जीशान ने पियूष , सत्या और मुझसे बात करना बंद कर दिया था। जसबीर और जैकब से सब बात करते थे , पर सिर्फ बात। उनका कोई दोस्त नहीं था। क्लास में एक अजीब सा माहौल बन गया था। एक दिन नसीम ने मुझे बताया की ज़ीशान ने उसको "काफ़िर "से दोस्ती रखने को मना किया है। उसका इशारा हमारी दोस्ती से था। फिर एक दिन पियूष ने मुसलमानो के इतिहास से कोई घटना क्लास में चटखारे लेकर सुनाई। इसपर जीशान ने हिन्दुओं को पत्थर पूजने वाला पत्थर दिमाग कहा। छोटी सी उम्र में सब समझदार गए थे। पियूष और ज़ीशान की एक दिन इस बात पर भी बहस हुई कि अल्लाह और भगवान की फाइट करवाई जाए तो कौन जीतेगा। अभिभावकों ने हमको "कम्युनल" या "सेक्युलर " बना दिया था। पियूष और जीशान के दिमाग से वो फितूर कभी नहीं निकल पाया। उनकी फेसबुक पोस्ट अभी भी उनकी मानसिकता बताते हैं। दोनों औसत छात्र रहे। ना अच्छा पढ़े न अच्छी नौकरी मिली। खाली टाइम और सस्ते इंटरनेट ने इनकी "धर्म सेवा " को और हवा दी।
बच्चों की मानसिकता अभिभावक बनाते हैं। एंटीबायोटिक , हेपटाइटिस बी , पोलियो , जॉन्डिस वगैरह का इंजेक्शन लगवाते लगवाते हम बच्चो को कम्मुनलिस्म का इंजेक्शन भी कब लगा देते हैं , पता ही नहीं चलता। बच्चों को बड़ों की इज़्ज़त करना , मिल बांटकर खाना , मार पीट न करना , गाली न देना , toilet जाने के लिए इशारा करना , "नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ " गाना , गिनती पहाड़े और कविता पढ़ना सिखाने वाले माँ बाप मज़हब की आधारभूत शिक्षा देना न जाने कब सीखेंगे।
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