Thursday 13 December 2018

कारपूल पार्टनर

आज अपनी सोसाइटी के ही शंकर जी कारपूल में मिल गए।  पेट्रोल की कीमत को देखते हुए मैंने कारपूल ऐप की सदस्यता ले रखी है।  पेट्रोल का खर्चा तो निकलता ही है साथ में लोगों से जान पहचान हो जाती है सो अलग । कभी कोई अपने जैसा भाई मिल गया तो गप्पें मारते समय कट गया और कोई बोर मिल गया तो विचारमग्न होने का अभिनय किया और उसकी बकवास से बच गया। धीरे-धीरे लोगों को झेलने का एक्सपर्ट बन चुका हूँ। मनोरंजन के लिए मैंने मन ही मन  बहुतों के निक नेम रख लिए हैं  -  ज्यादातर निकनेम किसी न किसी जानवर के नाम पर हैं  - पता नहीं क्यों मुझे हर आदमी के अंदर किसी न किसी जानवर की झलक दिख जाती है।  आई टी कंपनी में काम करने वाला हाइपरऐक्टिव अमन "चीता" है और बहुत ज्यादा बोलने वाला सुमित "तोताराम" और रोज़ कार में ही अपने जूनियरों पर फ़ोन पर चिल्लाने वाला जतिन "लकड़बग्घा". ऐसे ही औरों के भी हैं जो बस मुझे ही पता थे।  मैं इन लोगों को देखते ही मन ही मन उनके निकनेम को सोचकर मुस्कुरा उठता हूँ , इसका यह भी फायदा है कि ये कारपूल पार्टनर्स मुझे हंसमुख समझते हैं । 
                                      शंकर जी सबसे अलग निकले।  उम्र करीब बावन साल , पूरी दुनिया घूमे हुए।  अभी गुड़गांव की किसी फाइनेंस कंपनी में कंसल्टिंग कर रहे हैं (इतना परिचय ये whatsapp chat पर ही दे चुके थे )।  "चार-पांच लाख महीने का कमाता होगा ये आदमी। अगर ये आदमी बोलने वाला हुआ ये थोड़ी बढ़िया बातें करेगा - योरोप और अमरीका की , CEO और डायरेक्टर्स की , लीडरशिप के कुछ सबक बताये शायद और आगे किसी अच्छी नौकरी के लिए सिफारिश कर दे तो कहना ही क्या . उम्र ज्यादा है इसलिए अगर बोर भी किया तो जवाब देना होगा।"  मैंने एक सरसरी नज़र उनपर डाली।  चंदला सर , विदेशी चश्मा, करीने से पहना हुआ नजाकत भरा सूट जो शायद  'अरमानी' का हो।  देखकर ऐसा लगा जैसे कोई "सफ़ेद बाघ " हो।  ये लो , इनका भी नामकरण हो गया - सफ़ेद बाघ !
                                                   सफ़ेद बाघ ने बोलना शुरू किया।  पहले कुछ इधर उधर की बातें हुईं।  कारपूल के फायदे डिस्कस  हुए।  फिर कुछ परिवार की बातें हुयी। फिर आप बोले - "मेरा तो संडे सत्संग में ही जाता है।  बढ़िया लोगों की संगत , भक्ति-भाव , सात्विक आचार-व्यवहार आदि " जिसका डर था वही हुआ। शंकर जी बोर करने जा रहे थे , मैंने इसको चैलेंज के तौर पर लिया।  अपना  शास्त्रीय ज्ञान दिखाने का मौका मिला।  पहले महाभारत और गीता की बातें हुईं , फिर परोपकार का महत्व , त्याग की प्रधानता जैसे दार्शनिक विषय छेड़े गए।  पर मैंने नोटिस किया कि शंकर जी को मेरी कोई बात सुनने में कोई विशेष रूचि नहीं थी। वो अपने दार्शनिक अचीवमेंट्स बताने में मगन थे।  किसी स्पिरिचुअल गुरु को फॉलो करते थे शंकर जी, इनके पिताजी गुरूजी के पिताजी से दीक्षित थे और इनके दादाजी गुरूजी के दादाजी से. पीढ़ियों से सात्विक और परम आस्तिक परिवार !  मांस , मछली , अंडा , प्याज , लहसुन कुछ नहीं खाते थे।  पूरी दुनिया घूमी लेकिन सात्विक आहार न त्यागा।  आहार सात्विक तो विचार अहिंसक।  प्याज , लहसुन , मांस इत्यादि कामाग्नि और हिंसा को भड़काते हैं इसलिए न तो खुद खाते हैं  परिवार में किसी को  खाने देते हैं।  पत्नी शादी से पहले खाती थी , पर शादी के बाद उसको भी सात्विक आहार पर ले आये।  बीच में दस मिनट आँख बंद करके प्रार्थना भी की शंकर जी ने।  इतने बढ़िया व्यक्ति !!! मैं मन ही मन उनको "सफ़ेद बाघ" सोचने पर पछता रहा था।  "इनके लिए कोई निकनेम नहीं।  संत पुरुष हैं , फादर फिगर हैं " मैंने मन ही मन सोचा।

                            अचानक एक कार वाला खतरनाक ढंग से ओवरटेक कर गया , हमारी कार बाल-बाल बची।  "ऊप्स ! " मेरे मुंह से गाली निकलते-निकलते बची , लेकिन यह क्या ? शंकर जी के मुंह से धराप्रवाह गालियां बह रही थीं। उन्होंने जाने कैसे यह भी देख लिया था कि कार कोई औरत ड्राइव कर रही थी।  उसके चरित्र और उसके परिवार वालों को शंकर जी ने अपने संस्कारवान शब्दों से विभूषित किया।  अब वो रंग में आ चुके थे।  अपने ऑफिस में काम करने मॉडर्न लेडीज का अपने पति से छुपकर कहाँ - कहाँ सम्बन्ध है , उनके फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाली नेवी अफसर की अकेली पत्नी के पास कैसे कॉलेज के लड़के आते हैं और चुस्त कपडे पहनने वाली लड़कियाँ  कैसे छेड़-छाड़ को "एन्जॉय" करती हैं , ये सब ज्ञान शंकर जी के श्रीमुख  से गिरता रहा और मैं उनकी उम्र का लिहाज़ करके सुनता रहा।  मन कर रहा था कि परिवाद करूँ पर  बमुश्किल खुद को ज़ब्त किये रहा ।
                             उनके ऑफिस के नीचे  कार रोककर उनपर  नज़र डाली।  वही खल्वाट सर , वही विदेशी चश्मा , अरमानी सूट , चमचमाते जूते।  सफ़ेद बाघ ? नहीं-नहीं।  ध्यान से देखा तो बाघ की खाल में भेड़िया बैठा  था।  ब्रांडेड कपड़ों में एक रूढ़िवादी बुर्जुआ बैठा था। अहिंसक,सात्विक, संस्कारी चादर में से हिंसक घिनौनी सोच झाँक रही थी। 

No comments:

Post a Comment