Tuesday 30 January 2018

याददाश्त !




वह दिन अभी भी याद है उसको ,
जब छोड़ा था साथ उसका तुमने
चुभा, जला था कुछ दिल में ,
दर्द हुआ , खूं बह निकला
पानी बनकर आँखों से ...

बिगाड़े थे कुछ काम अपने ,
और झल्लाहट में तोड़ दिए थे कुछ सामान .
चिल्लाया , झल्लाया , तड़पा
फिर मुस्करा दिया हौले से
यह सोचकर के कुछ ही दिन की तो बात है 
फिर पछताओगी , तुम फिर आओगी
और एहसास दोबारा जिंदा करेंगे इश्क को ...

 
कि वह दिन अभी भी याद है उसको
जब टूटे थे उसके सपने ,
वह स्नेह भी याद रहा उसको ,
जो जन्मा , पला , बढ़ा , फैला 
वो लम्हे , वो यादें , रहना संग संग हर पल हर छन
भूला , ना भूलेगा वह जाने कब तक

मगर जाने क्यों
अब ज्यादा याद है उसको
वो जलन , चुभन , तड़पन
वह कमबख्त एकाकीपन ...
वो रोना , चिल्लाना ....
आंसू बहाना ...
खाना खाना .....
कि अब नहीं चमक आती उसकी आँखों में याद करके तुमको
अलबत्ता आती है बेचैनी , नफरत और बेदर्दी .

बुरा भुलाना नामुमकिन है कुछ भी उसके लिए कभी
अच्छा भुला रहा है धीरे - धीरे ,
और जल्द ही भूल जायेगा रहा - सहा भी .

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